क्या आप जानते हैं कि केवल Mirza Ghalib Shayari 5% शेर ही उनके जीवनकाल में प्रकाशित हुए थे? दुनिया के सबसे महान शायरों में गिने जाने वाले मिर्जा ग़ालिब की अधिकांश रचनाएँ उनके जीवन के बाद ही सामने आईं! मैं जब पहली बार गालिब की दर्द भरी शायरी से रूबरू हुआ, तो मेरे अंदर कुछ हिल गया। उनके शब्दों में छिपा दर्द, वेदना और प्रेम का अटूट रिश्ता आज भी हमारे दिलों को छू लेता है।
1797 से 1869 तक के अपने जीवनकाल में ग़ालिब ने ऐसी रचनाएँ दी जो सदियों बाद भी उतनी ही प्रासंगिक हैं। दर्द को इतनी खूबसूरती से बयां करने वाले शायर शायद ही कोई दूसरा हो! अगर आप भी अपने दिल के किसी कोने में दर्द महसूस करते हैं, या जीवन की पेचीदगियों को समझना चाहते हैं, तो ग़ालिब की शायरी आपको जरूर छू लेगी।
आइए, इस अनमोल खजाने को एक साथ खोलें और महसूस करें उस दर्द को जिसने हिंदी-उर्दू साहित्य को एक नई पहचान दी!
Contents
मिर्ज़ा साहब कौन थे?
वे उर्दू और फ़ारसी के एक महान शायर थे। उनका पूरा नाम मिर्ज़ा असदुल्ला बेग ख़ाँ ग़ालिब था, और वे 19वीं सदी के सबसे प्रभावशाली और लोकप्रिय शायरों में गिने जाते हैं।
मिर्ज़ा ग़ालिब के बारे में संक्षेप में:
जन्म: 27 दिसंबर 1797, आगरा, भारत
निधन: 15 फरवरी 1869, दिल्ली
भाषाएं: उर्दू, फ़ारसी
मुख्य शैली: ग़ज़ल
मुख्य विषय: इश्क़, फ़लसफ़ा (दर्शन), ज़िंदगी और खुदा से संवाद
उनकी खास बातें:
ग़ालिब की शायरी में गहरा दर्शन, जीवन की जटिलताओं की समझ और आत्मा की गहराई झलकती है।
उन्होंने उर्दू ग़ज़ल को एक नई ऊंचाई दी, जहाँ उसमें केवल प्रेम नहीं बल्कि सोच, दर्द, और आत्मनिरीक्षण भी शामिल हुआ।
उनका लिखा एक प्रसिद्ध शेर है:
“हजारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।”
मिर्जा गालिब की दर्द भरी शायरी
मैं नादान था,
जो वफ़ा को तलाश करता रहा ग़ालिब,
यह न सोचा के एक दिन,
अपनी साँस भी बेवफा हो जाएगी।
मिर्जा गालिब।
सादगी पर उस के मर जाने की हसरत दिल में है,
बस नहीं चलता की फिर खंजर काफ-ऐ-क़ातिल में है।
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना,
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना।
सिसकियाँ लेता है वजूद मेरा गालिब,
नोंच नोंच कर खा गई तेरी याद मुझे।
ज़िंदगी अपनी जब इस शक्ल से गुज़री,
हम भी क्या याद करेंगे कि ख़ुदा रखते थे।
कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीर-ए-नीम-कश को,
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता।
मिर्जा गालिब की शायरी
हालत कह रहे है मुलाकात मुमकिन नहीं,
उम्मीद कह रही है थोड़ा इंतज़ार कर।
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वो आए घर में हमारे खुदा की कुदरत है,
कभी हम उन को कभी अपने घर को देखते हैं!
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’,
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने!
हम तो फना हो गए उसकी आंखे देखकर गालिब,
न जाने वो आइना कैसे देखते होंगे।
हुई मुद्दत कि ‘ग़ालिब’ मर गया पर याद आता है,
वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता।
ग़ालिब ने यह कह कर तोड़ दी तस्बीह,
गिनकर क्यों नाम लू उसका जो बेहिसाब देता है।
तेरे वादे पर जिये हम, तो यह जान झूठ जाना,
कि ख़ुशी से मर न जाते, अगर एतबार होता।
बना कर फकीरों का हम भेस ग़ालिब,
तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते है।
Mirza Ghalib ki Shayari
कहाँ मयखाने का दरवाज़ा ‘ग़ालिब’ और कहाँ वाइज,
पर इतना जानते है कल वो जाता था के हम निकले!
मोहब्बत में नही फर्क जीने और मरने का
उसी को देखकर जीते है जिस ‘काफ़िर’ पे दम निकले!
तू ने कसम मय-कशी की खाई है ‘ग़ालिब’
तेरी कसम का कुछ एतिबार नही है!
देखिए लाती है उस शोख़ की नख़वत क्या रंग,
उस की हर बात पे हम नाम-ए-ख़ुदा कहते हैं!
देखो तो दिल फ़रेबि-ए-अंदाज़-ए-नक़्श-ए-पा,
मौज-ए-ख़िराम-ए-यार भी क्या गुल कतर गई !
कहूँ किस से मैं कि क्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है,
मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता!
इनकार की सी लज़्ज़त इक़रार में कहाँ,
होता है इश्क़ ग़ालिब उनकी नहीं नहीं से!
हो चुकीं ‘ग़ालिब’ बलाएँ सब तमाम,
एक मर्ग-ए-ना-गहानी और है!
आशिक़ी सब्र तलब और तमन्ना बेताब,
दिल का क्या रँग करूँ खून-ए-जिगर होने तक!
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक,
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक!
नुक्ता-चीं है ग़म-ए-दिल उस को सुनाए न बने,
क्या बने बात जहाँ बात बताए न बने!
न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता,
डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता!
दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है,
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है!
मरते है आरज़ू में मरने की,
मौत आती है पर नही आती,
काबा किस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब’
शर्म तुमको मगर नही आती!
इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही,
मेरी वहशत तिरी शोहरत ही सही!
ओहदे से मद्ह-ए-नाज़ के बाहर न आ सका,
गर इक अदा हो तो उसे अपनी क़ज़ा कहूँ!
इब्न-ए-मरयम हुआ करे कोई,
मेरे दुख की दवा करे कोई!
न हुई गर मिरे मरने से तसल्ली न सही,
इम्तिहाँ और भी बाक़ी हो तो ये भी न सही!
ख़ार ख़ार-ए-अलम-ए-हसरत-ए-दीदार तो है,
शौक़ गुल-चीन-ए-गुलिस्तान-ए-तसल्ली न सही!
मैं बुलाता तो हूँ उस को मगर ऐ जज़्बा-ए-दिल,
उस पे बन जाए कुछ ऐसी कि बिन आए न बने!
जाँ दर-हवा-ए-यक-निगाह-ए-गर्म है ‘असद’,
परवाना है वकील तिरे दाद-ख़्वाह का!
ग़म-ए-हस्ती का ‘असद’ किस से हो जुज़ मर्ग इलाज,
शम्अ हर रंग में जलती है सहर होते तक!
मिर्ज़ा ग़ालिब की हवेली
ग़ालिब की शायरी ने न जाने कितनी मोहब्बत की कहानियों को जन्म दिया है। उनकी कविताएं सिर्फ़ इश्क़ की गहराइयों को ही नहीं छूतीं, बल्कि दिल टूटने के दर्द को भी बेहद खूबसूरती से बयां करती हैं। अगर आप शायरी के शौक़ीन हैं, तो मिर्ज़ा ग़ालिब की हवेली ज़रूर देखने का विचार करें।
इस ऐतिहासिक हवेली में कदम रखते ही, आप ग़ालिब की दुनिया में प्रवेश कर जाते हैं। संगमरमर से बनी उनकी प्रतिमा के सामने रखी किताबें, उनकी रचनात्मकता की झलक पेश करती हैं। हवेली की दीवारों पर ग़ालिब की मशहूर शायरी उर्दू और हिंदी दोनों में लिखी गई है, जो हर आने वाले को उनके शब्दों से जोड़ती है।
यहाँ केवल ग़ालिब ही नहीं, बल्कि उर्दू साहित्य के अन्य दिग्गज जैसे उस्ताद जौक, हकीम मोमिन ख़ान मोमिन, और अबू ज़फ़र की तस्वीरें भी प्रदर्शित हैं, जो इस जगह को एक साहित्यिक तीर्थ बना देती हैं।
हर साल 27 दिसंबर को ग़ालिब के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में एक भव्य मुशायरा आयोजित किया जाता है, जहाँ शायरी प्रेमी एकत्र होकर उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं। उल्लेखनीय है कि प्रसिद्ध मूर्तिकार रामपुरे द्वारा बनाई गई ग़ालिब की प्रतिमा का अनावरण 2010 में हुआ था, जिसे इस हवेली में रखा गया है।
दिल्ली के चांदनी चौक के पास स्थित बल्लीमारान की तंग और घुमावदार गलियों में घूमते हुए, आप जब कासिम जान लेन पर पहुंचेंगे, तो एक मस्जिद के पास आपको मिर्ज़ा ग़ालिब का यह ऐतिहासिक घर देखने को मिलेगा—जहाँ एक शायर ने अपने ख्वाबों को अल्फ़ाज़ दिए।
मिर्जा गालिब जयंती
मिर्जा ग़ालिब (Mirza Ghalib Shayari) की जयंती हर साल 27 दिसंबर को श्रद्धा और सम्मान के साथ मनाई जाती है।
Final Words About Mirza Ghalib Shayari
मिर्जा गालिब की दर्द भरी शायरी हमारे जीवन के अनुभवों को शब्द देती है। उनकी कलम से निकले हर शब्द में एक ऐसा दर्द छिपा है जो हमारे अपने दर्द को समझने में मदद करता है। गालिब ने अपनी शायरी में जीवन के हर पहलू को छुआ – प्रेम, विरह, दर्द, मृत्यु, और अस्तित्व के सवाल।
उनकी शायरी का जादू आज भी उतना ही ताज़ा है जितना दो सौ साल पहले था। शायद यही कारण है कि हर पीढ़ी गालिब की ओर लौटती है और हर बार उनके शब्दों में कुछ नया खोजती है।
मैं आशा करता हूँ कि इस संग्रह के माध्यम से आपको भी गालिब के दर्द की गहराई को महसूस करने का अवसर मिला होगा। अगली बार जब आप अपने दिल में कोई दर्द महसूस करें, तो गालिब के शब्दों में शायद आपको अपना ही प्रतिबिंब दिखेगा। क्या आपको गालिब का कोई ऐसा शेर मिला जिसने आपके दिल की बात कह दी? नीचे कमेंट्स में अपने प्रिय शेर हमारे साथ साझा करें और बताएँ कि वह आपको क्यों छू गया!